गुरुवार, 18 नवंबर 2021

अखनई झील

जलकुंभी और अतिक्रमण ने निगल लिया अखनई झील का असीम सौंदर्य
------

एक जमाने में कमल के फूलों और कमल गट्टों के लिए पूरे जिले में मशहूर और अपने आसपास के सैकड़ों गाँवों को पानी के साथसाथ रोजी-रोटी, और आजीविका देने वाली अखनई झील इन दिनों अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। 

हुसेनगंज कस्बे के पास स्थित  दस-बारह किलोमीटर लंबी और एक-डेढ़ किलोमीटर चौड़ी अर्ध चंद्राकर रूप में फैली अखनई झील किसी समय अपने किनारे स्थित गनपतपुर, फरसी, पतरिया, धरमदासपुर, फरीदपुर, औढ़ेरा सहित सैकड़ों गाँवों को आजीविका उपलब्ध कराती थी। गरमी आते ही कमल के गुलाबी फूलों से भर जाती थी यह झील और गुलाबी सौंदर्य की अनोखी आभा और कमल के फूलों की भीनी-भीनी खुशबू से पूरा क्षेत्र में गमकने लगता था।

कमल के पत्ते उस समय शादी-विवाह व अन्य कार्यक्रमों में पत्तल के रूप में प्रयोग किए जाते थे। कमल के पत्तों के लिए दूर-दूर से लोग आते थे और झील से कमल के पत्ते काटकर या पैसे देकर आसपास के गाँवों के लोगों से कटवाकर ले जाते थे।  ग्रामीण कमल के फूल और जड़ें बाजार में बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाते थे। 

इस झील में सैकड़ों प्रजाति की मछलियां पाई जाती थीं जो ग्रामीणों की आजीविका का बहुत बड़ा स्रोत थीं। जिन्हें आसपास के ग्रामीण लोग खाते थे और बाजारों में बेचकर अपना और अपने परिवार का पेट भरते थे।

इस झील में विभिन्न प्रकार के जलीय जीव रहते थे जिनमें प्रमुख रूप से ऊदबिलाव, कछुए और जलीय साँप रहते थे। शिकारियों ने मछलियों के साथ ही ऊदबिलाव और कछुए भी खत्म कर दिए। यह झील सैकड़ों प्रकार के स्थानीय पक्षियों का रहवास हुआ करती थी और इस झील में लाखों प्रवासी पक्षी, प्रवास के लिए आते थे। शिकारियों के कारण स्थानीय पक्षी तो खतम हो गए ही, प्रवासी पक्षियों ने भी झील में आना छोड़ दिया है।

लेकिन अब यह सब बीते दिनों की बातें हैं। अब यह जीवनदायिनी झील अपने अस्तित्व की लड़ाई हारने के कगार पर खड़ी है औरबारहों महीने पानी से लबालब भरी रहने वाली झील अपने दुर्भाग्य पर आठ-आठ आँसू रो रही है।

सबसे पहले इस झील के गले का फंदा बनी- जलीय खरपतवार जलकुंभी। जलकुंभी ने पूरी झील को ढक लिया और कमल के पौधों को बेदखल करने का काम किया। इससे इस झील के अनोखे सौंदर्य को ग्रहण लग गया। 

शिकारियों ने ऊदबिलाव , कछुए और मछलियों को पकड़ने के लिए कई बार कीटनाशक दवाओं का प्रयोग भी किया और पूरी झील को छोटे-छोटे बंधों में बाँधकर  झील के असीम सौंदर्य को ही बंधक बना लिया जिससे पूरी झील का जलीय पारिस्थितिकी तंत्र चौपट हो गया। जिससे इस झील में आने वाले लाखों प्रवासी पक्षियों की आवाजाही बंद हो गई है।

अतिक्रमण ने इसका इतिहास ही नहीं, इसके भूगोल को ही बदल डाला है। हजारों बीघे में फैली यह झील दिन प्रतिदिन सिकुड़ती जा रही है और इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। दो-तीन साल पहले #स्वामी_विज्ञानानंद और जलपुरूष #राजेंद्रसिंह की अगुवाई में सैकड़ों ग्रामीणों ने इसको बचाने के लिए पदयात्रा की थी । जिला प्रशासन ने उस समय इस झील के  सरंक्षण करने के आश्वासन भी दिए थे। लेकिन उन प्रशासनिक आश्वासनों का क्या हुआ किसी को पता नहीं है!

ध्यातव्य रहे कि यह प्रसिद्ध अखनई झील ससुर खदेरी नदी न02 का उद्गम स्थल भी है।
-----

-- प्रेम नंदन
09336453835
premnandanftp@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कविता

दुनिया की प्रत्येक चीज   संदेह से दूर नहीं मैं और तुम  दोनों भी खड़े हैं संदेह के आखिरी बिंदु पर तुम मुझ देखो संदेहास्पद नजरों से मैं तुम्हें...