आज जब हिंदी साहित्य में कविता के तथाकथित संकट पर कुछ लोग बहुत चिंतित दिख रहे हैं और ऐसे शोर मचा रहे हैं कि उनके जाते ही हिंदी कविता भी उनके साथ ही चली जायेगी। इन कुछ तथाकथित बुजुर्ग साहित्यकारों की ऐसी बेहूदी हरकतों पर सिर्फ हँसा जा सकता है।
हिंदी कविता पर कहीं कोई संकट नहीं है, हाँ, उन साहित्यकारों पर जरूर संकट दिख रहा है, जो मठाधीशों , गैंगों और जातिवाद को पोषित करते रहे हैं और कविता को रखैल समझते रहे हैं।
आज हिंदी कविता पूरी जिम्मेदारी और पक्षधरता के साथ आगे बढ़ रही है और अपने समय की विडम्बनाओं, संघर्षों, विचलनों, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक समस्याओं की चीरफाड़ भी कर रही है।
इस माहौल में दलित कविता भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों से पूरी तरह बाख़बर है और अपनी भूमिका का निर्वहन बाखूबी कर रही है। इस समय दलित कविता में बहुत से कवि रचनारत हैं और अपनी कविताओं के माध्यम से दलित कविता को नया मुकाम दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। प्रसिद्ध दलित कवि और चिंतक आर. डी. आंनद इस मुहिम के मजबूत और संघर्ष शील सिपाही हैं, जो अपनी तेजस्वी रचनात्मक वैचारिकी के लिए जाने जाते हैं।
हाल ही में बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित उनका कविता संग्रह 'सुनो भूदेव' एक बेहतरीन कविता संग्रह है, जोपाठकों और आलोचकों का ध्यान आकर्षित करने में सफल रहा है। इस संग्रह में प्रकाशित कविताओं को पढ़ने के बाद