रविवार, 13 जून 2021

मूँगफली, गिलहरियाँ और यादें

मूँगफली, गिलहरियाँ और यादें 

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खेत की मेड़ पर बैठकर

गिलहरियों को मूँगफली खिलाते हुए 

हाथ थोड़ा बहके

और बहके हुए हाथों को 

याद आए बीते दिन

और इस तरह बहुत कुछ याद आया…


बाग में बनी 

बाबा की समाधि 

के आत्मीय सानिध्य में

खिले हुए बेला के फूलों का चेहरा

आँखों में तैर गया


खेतों में झूमती हुईं

चिड़ियों की गुंजार

हवा में संगीत की मीठी लहर घोल गई 


रंग-बिरंगी हजारों तितलियां

बेरंग जिंदगी में

इन्द्रधनुषी रंग घोल गईं


फूलों सी महकी हुई 

मनमौजी पुरवाई 

यादों की महफिल में

खुशबू बिखेर गई


आँखों में पसरी उदासी को भाँपकर

गिलहरियां बदल गईं 

सरसों के फूलों में 

और एक पूरी किताब चित्रित हो गई

बाह्य दल, दलपुंज, पुंकेसर 

और स्त्रीकेसर के चित्रों में


सरसों के फूलों की 

पंखुड़ियां  छूते हुए 

उनके परागकणों में 

महसूस हुई

जिंदगी के सबसे अनमोल पलों की खुशबू


पीले होते हुए  हाथों में 

फिर गिलहरियां फुदकने लगीं

मूँगफली माँगने लगीं


इस तरह बहुत सी यादें

आकर घेर बैठीं


और इस तरह

मूँगफली और गिलहरियों के बहाने 

बहुत कुछ याद आया…!


@ प्रेम नंदन

14/02/2018

01:56pm


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