शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

कविता

दुनिया की प्रत्येक चीज 
 संदेह से दूर नहीं

मैं और तुम 
दोनों भी खड़े हैं
संदेह के आखिरी बिंदु पर

तुम मुझ देखो
संदेहास्पद नजरों से
मैं तुम्हें

कविता 
संदेह के इन्हीं रास्तों पर
शब्दों की अविकल आवाजाही है

जीवन और मौत के बीच
संदेह का विस्तृत 
व्यापार है कविता

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