गुरुवार, 18 नवंबर 2021

इतने सारे लोग

इतने सारे लोग हैं
गलत को गलत, 
सही को सही ,
कहने वाले ,
फिर भी व्यवस्था ,
किसी की नहीं सुनती ,
अपना ही राग अलापती है !

कुछ और नहीं कर सकते 
तो आओ कुछ ऐसा करें
गलत को और जोर से गलत कहें
सही को और ऊँची आवाज में सही कहें
एकजुट हों,
और जोर से चीखें-
शायद पिघल सके
सत्ता के कानों में घुला हुआ शीशा !

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कविता

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