सोमवार, 17 जुलाई 2023

मेरे महबूब शहर

जब से होश संभाला
गाँव में रहते हुए 
दो शहरों के बीच
झूलता रहा हमेशा
एक अपना शहर फतेहपुर
दूसरा बाबू जी का शहर इलाहाबाद
(भरवारी, जो अब कौशांबी जनपद में है)
जहाँ भारतीय रेलवे में मुलाजिम थे

और मेरे लिए
पन्द्रह-बीस दिन में
दो-तीन दिन के लिए
गांव आने वाले
रिस्तेदार जैसे

मैं अक्सर सपने में
फटफटिया लेकर 
गाँव से फतेहपुर
और फतेहपुर से भरवारी(इलाहाबाद) के
कई-कई चक्कर लगाया करता था
एक ही बार में

मेरे लिए तब तक 
भरवारी का मतलब इलाहाबाद ही था
जब तक मैं भरवारी नहीं गया

एक बार जब
काफी दिनों तक
पिता जी नहीं आए गांव
तो जिद्द करके
अचानक पहुंच गया भरवारी
पैसेंजर गाड़ी में बैठकर
जब खोजते-खोजते
पिता जी के सरकारी क्वार्टर पहुंचा
वे रात का भोजन बनाने की तैयारी कर रहे थे

मुझे देखते ही चौंके
और भींचकर गले लगा लिया
पिता की आँखों का नम होना
महसूस किया पहली बार 

दो-तीन दिन बाद
जब पिता के साथ लौटा गाँव
मेरे लिए पिता के मायने बदल चुके थे

कविता

दुनिया की प्रत्येक चीज   संदेह से दूर नहीं मैं और तुम  दोनों भी खड़े हैं संदेह के आखिरी बिंदु पर तुम मुझ देखो संदेहास्पद नजरों से मैं तुम्हें...