गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

अधूरी कविता

जो नहीं होना चाहिए
ऐसा ही कुछ हो रहा है
जीवन में

समय की विकट चाल
चार कदम आगे
तो चार कदम पीछे
न जाने क्यों?

स्मृतियां गुनगुनाती हैं
अनाम से
दर्दीले लोकगीत
ओस भरी बोझिल और प्रतीक्षारत 
रातों में

सब कुछ तिरोहित हो
बह रहा आँखों की गमगीन कोरों से
लिखता मिटाता हुआ
जीवन की बेढंगी
अधूरी कविता

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