सोमवार, 8 मई 2023

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष: भाग-2

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष: भाग-2
‘ध्यान पर ध्यान दें तो समस्याएं अंतर्धान’
 
जाने-माने बौद्ध भिक्षु योंगे मिंग्योर रिन्पोछे से विशेष बातचीत
A long interview with Buddhist Monk Yonge Mingure Rinpoche

Q.  समस्याएं और परेशानियां सबकी ज़िंदगी में हैं। उनसे घिरा होने के बावजूद इंसान खुश कैसे रह सकता है? 5 टिप्स दें।
A. 1. हमेशा मुस्कुराते रहें। यहां तक कि जब बड़ी समस्याएं सामने आएं, तब भी। अगर हम समस्याओं को देखकर हार मान लेते हैं तो वे हमारी ज़िंदगी में बार-बार आती हैं। इन्हें आप मुसीबत के रूप में न देखें। ये आती हैं तो हमारा अंदरूनी विकास होता है। इन्हें एक टीचर के तौर पर देखना चाहिए। यह हमारे सीखने की घड़ी होती है। उस समस्या की जड़ तक जाएं। उस समस्या से उबरने का प्रयास करें। कोशिश लगातार करते रहें। गलतियां होंगी। गलतियों से ही सीख-सीखकर हम कामयाबी हासिल करते हैं।
2. समस्या आ जाने पर अटकें नहीं। संभावनाओं और अवसरों के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। कई ऐसे रास्ते और तरीके हमेशा मौजूद रहते हैं जिनके जरिए आप आगे बढ़ सकते हैं। आमतौर पर हम वहीं अटककर रह जाते हैं। हमें लगता है कि हम बर्बाद हो चुके हैं। ज़िंदगी में कुछ बचा नहीं है। लेकिन आप वहीं ठहरकर थोड़ा इंतजार करें और जो हो रहा है, उसे होने दें। या फिर आप दूर भाग सकते हैं। कई काम कर सकते हैं। लेकिन आपको लीक से हटकर सोचना होगा। उस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश करनी होगी। 
3. अपने अंदर निहित मूल अच्छे गुणों को न भूलें। क्रोध और इच्छाओं के पीछे तुरंत भागना शुरू न करें।
4. अपने जीवन में संतुलन खोजने की कोशिश करें। मध्य मार्ग अपनाएं। उदाहरण के लिए, आप जब बहुत कामयाब हो जाते हैं तब आप खुद को भूल जाते हैं, आप जल्दी सोना भूल जाते हैं, कसरत करना भूल जाते हैं, आप पौष्टिक भोजन करना भूल जाते हैं, आप बहुत ज्यादा काम करने लगते हैं। यह ठीक नहीं है। 
5. अभी मजा या फायदा हो रहा है, इस आधार पर फैसले न करें। मेरे इस फैसले का लंबी अवधि में असर क्या होगा, यह देखें। शॉर्टकट न अपनाएं। 
 
Q. लेकिन हमसे कहा जाता है कि आज की फिक्र करें, कल के बारे में न सोचें।  
 A. मेरा कहना है कि वर्तमान में मौजूद रहें लेकिन आगे की सोचकर, लंबे समय के नतीजों को भी ध्यान में रखें।

Q. परेशानियों का सामना कैसे करें? शरीर की परेशानी, मन की पीड़ा, अवसाद आदि।
A. अगर शरीर में कष्ट हो तो आप खुद की देखभाल करके उसे ठीक कर सकते हैं। आगे सेहत की परेशानियां न हों, इसके लिए अच्छा व्यायाम करें, जल्दी सोएं, पौष्टिक भोजन खाएं, माइंड मेडिटेशन करें। मुझे लगता है कि ये चीजें महत्वपूर्ण हैं। ये सामान्य चीजें हैं लेकिन काफी मदद करती हैं। जहां तक मानसिक परेशानियों की बात है, तो आपको देखना होगा कि मन के साथ कैसे काम करें। बुद्धि के स्तर पर, भावना के स्तर पर, आदत के स्तर पर अपने मन के साथ कैसे काम करें। ये चीजें मन की पीड़ा को दूर करने में सहायक होती हैं।  
 
 
Q. कभी-कभी एहसास होता है कि ज़िंदगी यों ही बीती जा रही है, बेमतलब। क्या करें कि इसे मतलब मिल जाए?
A.  ज़्यादातर लोगों को लगता है कि कि अगर वे खुश हैं तो जीवन सार्थक है। सभी लोग खुशी खोज रहे हैं। किसी को खूब पैसा कमाने से खुशी मिलती है तो किसी को पावर में, किसी कोई रिश्तों में।लेकिन यह खुशी टिकती नहीं। कारण यह कि खुशी का असल जरिया कुछ और ही है। सबसे अहम बात है, अपनी मूल प्रवृत्ति को पहचानना। खुद को जानना, रोज़ थोड़ा-थोड़ा। यह सफर बहुत दिलचस्प है। खुद को जानने का काम ध्यान की मदद से मुमकिन हो पाता है। ध्यान दो तरह का होता हैः एक, औपचारिक ध्यान जिसे हम एक खास मुद्रा में बैठकर करते हैं। यह 5 मिनट से शुरू करके कितनी भी देर का हो सकता है। इसे रोज लगातार करना बहुत जरूरी है। तभी नतीजे मिल पाते हैं। दूसरा ध्यान, अनौपचारिक। यह कहीं भी, किसी भी वक्त, कुछ भी करते हुए  किया जा सकता है। चाहे हम खा-पी रहे हों, चल-फिर रहे हों, बस हमें बीच-बीच में जागरूक रहना है कि हम क्या सोच रहे हैं, क्या महसूस कर रहे हैं, क्या कर रहे हैं। अगर यह भी मुश्किल लगे तो बस या मेट्रो का इंतज़ार करते भी आप अपनी सांस को गिनना शुरू कर दें।चूंकि हम सांस तो हर वक्त लेते रहते हैं, ऐसे में इस पर कभी भी, कहीं भी ध्यान कर सकते हैं। इस तरह चलना शुरू करें, ज़िंदगी को मतलब मिल जाएगा। ज़िंदगी को मकसद या मतलब तब भी मिलता है जब हम समाज के लिए, दूसरे लोगों की मदद के लिए, दूसरों की बेहतरी के लिए कुछ काम करते हैं। तब हमें अपने अंदर संतुष्टि का एहसास होता है। जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो वे भी जीवन में सफल होने में हमारी मदद करते हैं। यह दोनों की जीत वाली स्थिति होती है।  

Q. ज़िंदगी में अक्सर हमें खालीपन महसूस होता है। ऐसे में हम पैसा और ताकत बटोरने में जुटकर इस खालीपन को पाटने की कोशिश करते हैं। हम मोबाइल, टीवी आदि में बिजी रहकर इससे उबरने की कोशिश करते हैं, लेकिन खालीपन खत्म नहीं होता। कई लोगों के पास सबकुछ होता है, फिर भी उनमें खालीपन रहता है। इससे छुटकारा पाने के लिए क्या कर सकते हैं?  
A. बुद्ध ने भी यही कहा है, हमें कभी संतुष्टि नहीं मिलती। सब खोखला लगता है। असुरक्षा, डर, उदासी, अकेलापन महसूस होता है। ऐसे में आप अपने जीवन में जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे अच्छे तरीके से करने की कोशिश करें। आप इसकी भरपाई प्रसिद्धि, ताकत, पैसा, शादी, लॉटरी आदि से नहीं कर सकते। प्रेम और करुणा के साथ खुद को अधिक से अधिक जोड़ें। जागरुकता के साथ जुड़ें। कभी-कभी बस अपनी सांस को महसूस करते रहें। इससे काफी मदद मिलती है। अपना अध्ययन बढ़ाएं, ज्यादा से ज्यादा ज्ञान हासिल करें। 

Q. आपने अभी कहा कि खुश रहने के लिए जरूरी है, अपनी मूल प्रवृत्ति को पहचानना। यह मूल प्रवृत्ति क्या है?
A. हमारे वज्रयान में माना जाता है कि हम पहले से ही बुद्ध हैं। यह बुद्धत्व सिर्फ हमारे अंदर ही नहीं है, बल्कि सब जगह है। हमें इसे देखना चाहिए और इसकी तारीफ करनी चाहिए, शुक्र मनाना चाहिए। इस तरह हमारे भीतर खुशी का भाव बना रहता है। हमेशा याद रखें कि हमारे पास ताकत है, क्षमता है, अच्छाई है। हम ऐसे रास्ते पर हैं, जहां बहुत सारी अच्छी चीजें हैं। इसे न भूलें। इससे हम खुश रहेंगे। वरना सोचते रहेंगे कि मैं अच्छा नहीं हूं, मैं बुरा हूं। जीवन की सार्थकता इसमें है कि हम अपनी असल क्षमताओं को जानें, अंदरूनी खूबसूरती, अच्छाइयों से रूबरू हों। हम सभी के अंदर जागरुकता, प्रेम-करुणा और विवेक जैसे अद्भुत गुण मौजूद हैं। इनके जरिए हम अपनी और दूसरों की ज्यादा से ज्यादा मदद कर सकते हैं। यही चीजें मेरे जीवन को सार्थक, उद्देश्यपूर्ण  और शांतिपूर्ण बनाती हैं।  
 

Q. आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे कि हम सबका मूल स्वभाव अच्छा ही होता है? असल ज़िंदगी का अनुभव बताता है कि हम पशु प्रवृत्ति से ग्रस्त हैं। पहले हम जानवर ही थे। हमारे अंदर वासना है, गुस्सा है। तमाम सब कमियां हैं। हमें कानून की छड़ी से काबू करना होता है। 
 A. दरअसल बुरी चीजें केवल ऊपरी लेवल पर होती हैं। गहरे स्तर पर यह नहीं होता। क्या यह सच नहीं कि आप 24 घंटे गुस्से में नहीं रह सकते। असली दिक्कत यही है कि हम नकारात्मक चीजों को ही ज्यादा देखते हैं। मसलन, एक इंसान में 10 अच्छी-बुरी बातें हैं। इनमें से 9 अच्छाइयां हैं और सिर्फ 1 बुराई। लेकिन हम अक्सर इस एक बुराई को पकड़कर बैठ जाते हैं। हमें सबके भीतर की अच्छाई पर फोकस करना चाहिए। मन सबका अच्छा है। इसे ऐसे समझें। मान लें कि मन एक साफ, नीला आसमान है। लेकिन आसमान हमेशा साफ और नीला नहीं दिखता। हमें धूल, धुआं, बादल दिखते हैं। यह जो हमें दिखाई दे रहा है, इससे आसमान की मूल प्रवृत्ति थोड़े ही बदल जाएगी। ऐसे ही मन सबका अच्छा है। विचारों, भावनाओं और यादों के कारण उसमें विकार आ जाते हैं। हम अपनी मूल प्रवृत्ति से भटक जाते हैं। ध्यान की मदद से हम अपनी मूल प्रवृत्ति को वापस पा सकते हैं।
 

Q. मेरे अंदर कई बुरी आदतें और कमजोरियां हैं। मैं किस हद तक उन्हें सुधार सकता हूं? सबसे अच्छा तरीका क्या है? क्या अपनी मूल प्रकृति को बदला जा सकता है? इस बारे में आपने रिट्रीट में बात की थी। आपने न्यूरोप्लास्टी के बारे में बताया था।  क्या आप वह तरीका बता सकते हैं, जिससे आदतों को बदला जा सके? एक इंसान क्या-क्या बदल सकता है, क्या नहीं बदला जा सकता?  
A. हर कोई बदल सकता है। बदलाव की संभावना हर किसी के पास होती है। इसका कोई अपवाद नहीं। लेकिन बदलाव इस पर निर्भर करता है कि हम उसके लिए कोशिश करते हैं या नहीं और करते हैं तो कितनी। जो चीज बदली नहीं जा सकती है, वह है पैदायशी गुण। उसे आप नहीं बदल सकते। जैसे कि हम कहें कि जन्मजात गुण गोल्ड की तरह है। पीले रंग का, कीमती। उसे आप काट दें, जला दें, घिस दें तो भी नहीं बदल सकते। आप जितना काटोगे, जलाओगे, जन्मजात गुण और भी ज्यादा खरा बनकर, निखरकर सामने आएगा। लेकिन ऐसा कुछ जो जन्मजात नहीं है जैसे कि खोट, मिलावट आदि। यह सब बदला जा सकता है। इसलिए हम मानते हैं कि हमारे जन्मजात गुण अद्भुत होते हैं। हम सबमें प्रेम, करुणा है। जन्म से कोई भी दुष्ट नहीं होता। तमाम नकारात्मक आदतें, नकारात्मक भावनाएं - ये सब अज्ञानता, लालसा, लगाव से पैदा होती हैं। ये सब कुछ बदली जा सकती हैं लेकिन आसान नहीं होता। निश्चित रूप से इसमें कुछ समय लगता है। अगर दूषित व्यक्ति को आप कोशिश करने के बावजूद बदल नहीं पा रहे हैं तो उससे दूर चले जाएं। आप उसे बाहर से नहीं बदल सकते। अगर वह चाहे तो अंदर से खुद को बदल सकता है। हर इंसान में ऐसा करने की क्षमता होती है। मेडिटेशन इसमें सबसे ज्यादा मददगार बनता है। धीरे-धीरे एक-एक करके आप अपनी आदतों पर काम करके भी बदलाव ला सकते हैं। थेरपिस्ट की मदद से भी आप कुछ चीजें बदल सकते हैं। समाजसेवा से भी खुद में बदलाव आता है। 

Q. वेदांत के मुताबिक दुनिया एक भ्रम है, माया है। तो इस माया के लिए काम क्यों करें? यह तो अस्थायी है। हमेशा के लिए रहनेवाली नहीं है। तो दूसरों की सेवा क्यों करें? 
A.  यह है, लेकिन नहीं भी है। यह सपने के पिज्जा की तरह है। सपने का पिज्जा वह है जिसे आप छू सकते हैं, सूंघ सकते हैं, खा सकते हैं। लेकिन जब पिज्जा आग में जलेगा तो आपकी उंगली भी जल जाएगी। सपने में उंगली भी जल जाएगी। लेकिन क्या सपने का यह पिज्जा असल में मौजूद है? नहीं। असली पिज्जा का एक भी कण वहां नहीं है। फिर भी यह असली लगता है। हम उसे सूंघ सकते हैं, उसकी तरफ आकर्षित हो सकते हैं, महसूस कर सकते हैं। सपने में यह मुझे असली ही लगता है। लेकिन सपना टूटते ही यह बेवकूफी लगता है। तो सारा सांसारिक जीवन सपने के पिज्जा की तरह है। इसका मतलब यह नहीं कि यहां कुछ नहीं है। आप उसे देख सकते हैं, सूंघ सकते हैं लेकिन वह असली नहीं है। इसीलिए बहुत-से लोग इसे समझ नहीं पाते और मदद मांगते हैं। दुख भी असली नहीं है। लेकिन हम दुख में फंस जाते हैं। तब सबकुछ असली हो जाता है। हम परेशान हो जाते हैं। हमें दर्द होता है क्योंकि हमने अपने दिमाग को एक सांचे में कैद कर लिया है। हम सभी में अज्ञानता होती है। अज्ञानता हम पर हावी हो जाती है। ऐसे में तो मुझे और संवेदनशील होना चाहिए, है ना? दुख नहीं होता, लेकिन हम दुख पैदा करते हैं। तो क्या करें? ऐसे में प्रेम और करुणा मददगार साबित होते हैं। हमारा दिमाग एक टूल बॉक्स की तरह फिक्स होता है, पूरी तरह से। जैसे कि पानी की यह बोतल मेरे हाथ में है। अब यह बोतल मेरे हाथ में नहीं है। यह केवल एक संभावना है। इसे पलटकर देखते हैं।अगर यह एक सपना है तो मतलब यह कि हमें कुछ भी महसूस नहीं होगा, वहां कोई बोतल थी ही नहीं। हम इन दो पाटों के बीच फंस जाते हैं। लेकिन शून्यता इससे परे है। वहां बोतल है। बोतल नहीं है। दोनों चीजें एकसाथ हैं।

Q. मेरे लिए यह समझना थोड़ा मुश्किल है। सच कहूं तो यह सब मेरे सिर के ऊपर की बात है। 
A. वैचारिक मन से इसे नहीं समझा जा सकता।  

Q. इन दिनों बहुत-से स्पिरिचुअल और मेडिटेशन कोर्स जगह-जगह कराए जाते हैं लेकिन फिर भी बहुत सारी नकारात्मकता फैली हुई है। ऐसा क्यों?  
A. दरअसल हम जो जानते हैं, उस पर अमल नहीं करते, उसे जीवन में नहीं उतारते, समस्याओं के मामले में तो खासकर। यह कुछ ऐसा ही है, जैसे अगर आपके पास टारगेट है और एक तीर है, लेकिन आप तीर को टारगेट की तरफ नहीं बल्कि उलटी दिशा में चला रहे हैं। हम खुद को बदलना नहीं चाहते। उसके बाद जब आपका पड़ोसी कुछ अच्छा कर देता है तो आपको ईर्ष्या होने लगती है। जब पारिवारिक समस्याएं आती हैं तो आप टूट जाते हैं। 

Q. मानव जाति की 5 सबसे बड़ी समस्याएं क्या हैं?  
A. पहली समस्या अहंकार है। दूसरी समस्या, संतुलन न बना पाना है। तीसरी समस्याः हम सिर्फ शॉर्ट टर्म तक ही देखते हैं, दूर तक की नहीं सोचते। चौथी समस्या है कि हम खुद को भूल चुके हैं। हम सकारात्मक पक्ष नहीं देखते। हम अपने अंदर की अच्छी चीजों को नहीं देखते। दुनिया की अच्छी चीजों को नहीं देखते। इसीलिए हम हमेशा नकारात्मक बने रहते हैं। नौ अच्छी बातों को नजरंदाज कर एक बुरी चीज पर फोकस कर लेते हैं। पांचवीं समस्या, हम अच्छे-से संवाद नहीं करते। हमें एक-दूसरे से प्यार और करुणा के साथ जुड़ाव बनाना चाहिए। 

Q. जीवन में ऐसी कौन-सी सबसे बड़ी चीज है जिसे कोई इंसान हासिल कर सकता है? 
A. जागरुकता। 

Q. बुद्ध की मूल शिक्षाओं को समझने के लिए सबसे अच्छी किताब कौन-सी है?
A. मुझे लगता है कि धम्मपद सबसे अच्छी है। मूल रूप से पालि में लिखी गई यह किताब आज दुनिया की हर बड़ी भाषा में उपलब्ध है। इसमें भगवान बुद्ध के उपदेशों को संकलित किया गया है।

Q. बुद्ध ने जो कुछ कहा है, क्या वही अंतिम सत्य है? क्या बुद्ध के बाद भी बौद्ध धर्म में कुछ जोड़ा गया है?  
A. बुद्ध ने कभी नहीं कहा कि जो उन्होंने कहा है, वही अंतिम सत्य है। उन्होंने कहा कि मैं आपको रास्ता दिखाता हूं। 

Q. बुद्ध कहते थे- अप्प दीपो भव यानी अपना दीपक स्वयं बनो, मतलब अपना मार्गदर्शन स्वयं करो, तो क्या गुरु या शिक्षक की वाकई कोई जरूरत भी होती है या नहीं?  
A. गुरु आपका मित्र होता है। वह आपको राह दिखाता है। वह शिक्षक है, सहयोगी है। आपको शिक्षक की जरूरत पड़ती है। 

Q. शिक्षक जरूरी होता है, मान लिया लेकिन बहुत-से शिक्षक गलत भी तो होते हैं?  
A. हां, बहुत सारे शिक्षक गलत भी होते हैं। 

Q. क्या बुद्ध ईश्वर में विश्वास करते थे या वह नास्तिक थे?  
A. असल में वह नास्तिक नहीं थे। अगर वह नास्तिक होते तो एक ही विचार में फंसकर रह जाते। वह हर विचार से परे और आजाद थे। वह नास्तिक थे और नास्तिक नहीं भी थे। 

Q. क्या बौद्ध धर्म माननेवाले लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं?  
A. हम ईश्वर में विश्वास नहीं करते।  

Q. क्या आप पूर्वजन्म में विश्वास करते हैं? मृत्यु के बाद जीवन में यकीन रखते हैं? 
A. हां, हम पूर्वजन्म पर विश्वास करते हैं।  

Q. लेकिन वैज्ञानिक तो कहते हैं कि उन्हें पूर्वजन्म जैसा कोई सबूत नहीं मिला है।  
A. ठीक है, उन्हें इसका सबूत नहीं मिला है लेकिन उन्होंने यह भी कहां साबित किया है कि पूर्वजन्म जैसा कुछ होता ही नहीं।  

Q. आपकी दिनचर्या क्या होती है?
A. मैं रोजाना 6-7  घंटे की नींद लेता हूं। रात में 11 बजे से पहले सो जाता हूं और सुबह आमतौर पर 6-7 बजे उठता हूं। बिस्तर पर ही लगभग 1 घंटे तक ध्यान लगाता हूं। 

Q. यह ध्यान कैसा होता है?
A. स्पष्ट जागरुकता का। इसके लिए मेडिटेशन की जरूरत नहीं होती। बस भटकाव रोकना होता है। मन के साथ साक्षात्कार करना होता है, दीप्तिमान मन के साथ बने रहना होता है। स्वाभाविक स्पष्टता बनाकर रखते हैं। 

Q. क्या आप पानीपूरी खाते हैं?
A. हां, कभी-कभी। वैसे मेरा पसंदीदा भोजन दाल-भात है।  

Q. इसीलिए आप दाल-चावल का उदाहरण अक्सर देते हैं। क्या आप फिल्में देखते हैं? बॉलीवुड फिल्में या दूसरी फिल्में?  
A. मैंने पहले कुछ बॉलीवुड फिल्में देखी थीं लेकिन मुझे अब उनका नाम याद नहीं है। लेकिन वे फिल्में मुझे अच्छी लगी थीं।

Q. एक आम आदमी आपको बौद्ध भिक्षु मानता है। अगर वह आपको पानीपूरी या फिल्मों के मजे लेते हुए देखेगा तो सोचेगा कि अरे, ये तो भिक्षु होकर भी ज़िंदगी का भरपूर मजा ले रहे हैं? अगर आप पानीपूरी का आनंद लेते हैं तो आप स्वाद संवेदनाओं से खुद को जोड़ लेते है। आपका इस बारे में क्या कहना है?  
A. जब तक आप दूसरों को नुकसान पहुंचाने के इरादे से कुछ नहीं करते, तब तक इसका आनंद लेने में कुछ गलत नहीं है। बुद्ध ने कहा था कि अगर कोई शख्स 1000 सोने के सिक्कों की कीमत के बराबर की कोई चीज दान में दे तो आपको उसे भी स्वीकार करना चाहिए। लेकिन आपको उन चीजों की तलाश में नहीं भटकना चाहिए, लालसा नहीं करनी चाहिए। यह संतुलन बनाने जैसा है।  

Q. आपका चेहरा हमेशा चमकता-दमकता दिकता है। क्या आप रोजाना दाढ़ी बनाते हैं और सिर की भी शेव करते हैं?  
A. हां, हर दिन।

Q. क्या आपने शादी की है?  
A. नहीं, मैंने शादी नहीं की।  

Q. क्या आप ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं?  
A. हां।  

Q. क्या आपने कभी नाइटफॉल का अनुभव किया है? 
A. जब मैं जवान था, तब। अब आमतौर पर नहीं होता।  

Q. मॉर्डर्न साइंस का कहना है कि सीमन निकलने को कोई नहीं रोक सकता। यह हमारे शरीर में एक गिलास की तरह होता है। जब गिलास भर जाता है तो 10-15 दिन बाद सीमन बाहर छलक जाता है। कोई इसे रोक नहीं सकता।  
A. मुझे ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ। जब 20-22 साल का था, तब हुआ हो तो कह नहीं सकता।  

Q. आपने कभी किसी लड़की के प्रति आकर्षण का अनुभव किया है, प्यार जैसा?  
A. हां, क्यों नहीं। 

Q. क्या आप महिलाओं की सुंदरता की तारीफ करते हैं?  
A. बिलकुल करता हूं। मैं अलग-अलग लोगों में सुंदरता, अच्छाई देखता हूं। यहां तक कि चिड़चिड़े लोगों में भी एक सीमा के बाद मैं अच्छी चीजें देखने लगता हूं और हम अच्छे दोस्त बन जाते हैं।  

Q. समलैंगिक विवाह के बारे में आपका क्या ख्याल है, क्या यह ठीक है? 
A. हां, बिलकुल ठीक है।  

Q. क्या आध्यात्मिक साधना के लिए ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी है, जैसे कि आप करते हैं?  
A. मेरे पिता बौद्ध भिक्षु हैं, पर विवाहित हैं। जाहिर है, यह जरूरी नहीं है। लेकिन इससे मदद मिलती है।

Q. आप अपना खाली समय कैसे बिताते हैं?  
A. मैं कभी-कभी शारीरिक व्यायाम करता हूं। कभी टहलने निकल जाता हूं। कभी पढ़ता हूं। कभी-कभी सो जाता हूं।  

Q. जब आप अकेले होते हैं तो आपका मन क्या कहता है?  
A. जब मैं अकेला होता हूं, तब असल में मेरे अंदर एक तरह का आनंद अपने आप आने लगता है। मुझे एकांत पसंद है। 

Q. क्या आपको अब भी गुस्सा आता है, नकारात्मक भावनाएं आती हैं?  
A. हां, कभी-कभी मुझे गुस्सा आता है।  

Q. गुस्सा कब तक रहता है?  
A. थोड़े समय तक रहता है। लेकिन एक तरफ अंदर गुस्सा रहता है तो दूसरी तरफ शांति भी रहती है, नियंत्रण रहता है। पहले मुझे जब गुस्सा आता था तो घंटों तक मैं उस स्थिति में रहता था। अब मैं उस पर नियंत्रण कर लेता हूं। गुस्सा आता है और चला जाता है। 

Q. पिछली बार आपको गुस्सा कब आया था?  
A. मुझे याद नहीं।  

Q. आपकी कमजोरियां क्या हैं?  
A. मुझे एक समस्या रहती है। समस्या यह कि कभी-कभी मुझे लगता है कि मुझे लोगों को कितनी देर पढ़ाना चाहिए? मुझे अपने खुद के आनंद के लिए एकांत में कितना वक्त देना चाहिए? कभी-कभी यह संघर्ष मेरे अंदर चलता है।  

Q. कभी-कभी ऐसा लगता होगा कि मैं बहुत ज्यादा कर रहा हूं। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए?  
A. हां, बहुत ज्यादा लगता है और मैं इसका आनंद भी लेता हूं। लेकिन मुझे लगता है कि मुझे भी अपने लिए वक्त देना चाहिए, पर्सनल रिट्रीट (एकांत)में रहना चाहिए। मैं अपनी खुशी के लिए यह करना चाहता हूं। फिर भीतर की करुणा कहती है कि दूसरों की मदद करना भी जरूरी है।

Q. यह आपकी एक कमजोरी हुई। दूसरी कमजोरी क्या है? क्या वासना जैसी कोई कमजोरी भी है? 
A. कभी-कभी महसूस होता है कि मुझे वाकई में कुदरत के साथ रहते हुए अपननी ज़िंदगी बितानी चाहिए और चलते रहना चाहिए। किसी भी जगह पर ज्यादा देर रुकना नहीं चाहिए। कभी-कभी इन सहके लिए मुझे ज्यादा समय नहीं मिलता।

Q. क्या आपके अंदर वासना जैसी कोई चीज है? क्या आपको यौन आकर्षण महसूस होता है? 
A. सेक्सुअल एनर्जी तो महसूस नहीं होती लेकिन मैं सुंदरता को देखता हूं और उसकी तारीफ करता हूं। 

Q. आपका उद्देश्य क्या है? आप इतनी बातचीत करते हैं। आप यहां दिल्ली तक चले आते हैं। आप क्या करना चाहते हैं? आपका अंतिम लक्ष्य क्या है?  
A. लोगों की जितनी हो सके, उतनी मदद करना। मैं उनके अंदर की बुनियादी, सहज अच्छाई से संपर्क बनाने में मदद करना चाहता हूं।  

Q. आप टर्गर मठ और मेडिटेशन कम्युनिटी के प्रमुख हैं। मैंने रिट्रीट में आपके कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। वहां पर बैज बांटे गए थे। उन बैज पर आपकी तस्वीर थी। मैं गलत हो सकता हूं, लेकिन क्या उन बैज पर आपके बजाय बुद्ध की तस्वीर नहीं होनी चाहिए? क्या अपनी तस्वीर लगाना अहंकार नहीं दिखाता?  
A. मेरे बैज बांटे जाने के बारे में मुझे पता नहीं है। आयोजकों ने ये तैयार करवाए थे। वे इन्हें लेकर मेरे पास आए। मैंने देखा और सोचा कि शायद उन्होंने ऐसा अपनी पसंद, मान्यता या आदर की वजह से किया होगा। सच कहूं तो मुझे यह सब करना पसंद नहीं है।  

Q. हां, मैं इस बात को समझता हूं। तभी यह सवाल मेरे दिमाग में आया था।  
A. लेकिन इसके साथ ही मैं यह भी कहना चाहता हूं कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है। अगर उन्होंने अपने गुरु के प्रति श्रद्धा से ऐसा किया है तो अच्छा है। 

Q. आपके बारे में कहा जाता है कि आप दुनिया के सबसे खुशहाल इंसान हैं। क्या यह सच बात है? 
A. नहीं, मैं ऐसा नहीं हूं। मेरे शिक्षक मुझसे ज्यादा खुश हैं। कुछ लोग मुझसे कहते हैं कि मुझे इसका (सबसे खुशहाल इंसान होने का) इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन मैं इसका न तो अपनी वेबसाइट पर और न ही सेंटर पर प्रचार करता हूं। मगर कई दूसरे संगठन यह बात कहते हैं और वे इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन हमने कभी नहीं कहा कि उन्हें इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। वे कर रहे हैं, तो उन्हें करने दो। जो भी करें। लेकिन हम अपनी तरफ से इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे। मुझे कई लोगों ने यह कहा भी कि आपको महाराज (His Holiness) जैसे शब्दों का उपयोग करना चाहिए। मैं नहीं चाहता कि कभी अपनी श्रेष्ठता दिखाऊं। परंतु आपको मेरी वेबसाइट पर कई लोग ऐसे दिख जाएंगे जिन्होंने मेरे लिए महाराज जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है। 

Q. जब आप प्रवचन देते हैं या साधना सिखाते हैं तो आप मंच पर आम लोगों से ऊपर बैठते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि आपकी कुर्सी भी आम लोगों के जितनी बराबर ऊंची होनी चाहिए? आपको फर्श पर बैठना चाहिए? 
A. दरअसल मंच ऊंचा बनाने या ऊंची कुर्सी रखने का बंदोबस्त इसलिए किया जाता है ताकि लोग मुझे आसानी से देख सकें। अगर ऐसा नहीं होगा तो वे मुझे और मैं लोगों को नहीं देख पाऊंगा। 

Q. आप सही कह रहे हैं। मैं समझ सकता हूं। कुर्सी की क्वॉलिटी तो एक जैसी होनी चाहिए। 
A. कुर्सी आरामदायक होनी चाहिए। कभी-कभी पैरों को आराम देना होता है, उन्हें मोड़ना पड़ता है। ऐसे में बड़ी कुर्सी अच्छी रहती है। यह भी सच है कि कुछ लोग ऐसे हैं जिन्हें मेरा साधारण कुर्सी पर बैठना अच्छा नहीं लगता। मैं अलग-अलग धर्म केंद्रों में जाता हूं। उन लोगों को लगता है कि अगर वे यह सब नहीं करेंगे तो लोग उनकी इज्जत नहीं करेंगे। और जब मैं उनसे ये सब न करने के लिए कहता हूं तो उन्हें बुरा लगता है। कुछ मठों में धर्मगद्दी की तरह सिंहासन लगाया जाता है। जैसे कि दलाई लामा का सिंहासन लगता है, जिस पर बैठकर वह शिक्षाएं देते हैं। मैं जहां जाता हूं, वहां अगर लोग ऊंचा सिंहासन लगा देते हैं तो मैं उस पर बैठ जाता हूं। मैं यह नहीं कहता कि नहीं-नहीं, मैं इस पर नहीं बैठूंगा। यही संतुलन है, मध्य मार्ग निकालना।  

Q. आप अपने व्याख्यान इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में देते हैं। वहां सिर्फ रईस लोग ही आते हैं।
A. यह परिस्थिति पर निर्भर करता है। कभी-कभी मैं संकिसा में सिखाने जाता हूं। यह यूपी के मैनपुरी में एक जगह है। वहां के ग्रामीण बहुत सरल-साधारण हैं। मैं वहां जाता हूं। सड़कों पर घूमता हूं। गरीब लोगों को पढ़ाता भी हूं।  
  

Q. अभी आप एक फाइव स्टार होटल में ठहरे हुए हैं, साधारण होटल में क्यों नहीं रुकते?
A. कभी-कभी साधारण होटल में भी ठहरता हूं। चूंकि साधारण होटलों में कई बार दिक्कतें आती हैं जैसे कि मैं इन दिनों सफर में होते हुए भी साथ में ऑनलाइन व्याख्यान दे रहा हूं। 

Q. रोज़ाना?  
A. रोज़ाना। मैं हर रोज चार सत्र पढ़ाता हूं। इसके लिए साउंडप्रूफ रूम की जरूरत होती है। अच्छा इंटरनेट कनेक्शन चाहिए। लाइटिंग पर्याप्त हो। मैंने सैकड़ों रातें फुटपाथों पर सोकर गुजारी हैं।

Q. साधना शिविर के लिए क्या आप पैसे भी लेते हैं?  
A. हां, कुछ-कुछ जगहों पर शुल्क रखा जाता है। कई जगह मुफ्त में भी करता हूं।  

Q. पैसा क्यों लेते हैं, करुणा से क्यों नहीं करते?  
A. हम अमेरिका में बहुत सारे प्रयोग करके देख चुके हैं। हमने वहां वीकेंड में लोगों को सिखाने के लिए कैंप लगाया था, मुफ्त में सिखाने के लिए। वीकेंड को हफ्ते का सबसे अच्छा समय माना जाता है। हमें प्रायोजक मिल जाता है। प्रायोजक मिलने पर हम मुफ्त में सभी के लिए कार्यक्रम करते हैं। लेकिन हम यह देखकर हैरान रह गए कि वीकेंड प्रोग्राम में केवल 40 लोग ही आए। इसके बाद हमने सोमवार से गुरुवार तक 4 दिनों के लिए प्रोग्राम रखा। लोगों से फीस भी ली। उस प्रोग्राम में 300 लोग आए। मतलब जहां पर पैसा लिया, वहां ज्यादा लोग आए। जहां मुफ्त में किया, वहां कम लोग आए। फ्री कैंप में तो जितने लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, उनमें से आधे भी नहीं आए।  

Q. मतलब उन्होंने गंभीरता से नहीं लिया? 
A. हां, गंभीरता से नहीं लिया। यहां तक कि एक दिन लोग आते थे, अगले दिन उनकी संख्या कम हो जाती थी। उसके अगले दिन और भी कम। इस तरह हमने देखा कि अगर आप बिलकुल फ्री आयोजन करते हैं तो लोगों में उसकी वैल्यू नहीं रहती। 

Q.  मैं नेपाल में एक बार आपके घर गया था। आपका घर बहुत भव्य है। मैंने वहां आपकी बड़ी-सी कार भी देखी। मुझे लगता है कि भिक्षुओं को सरल-साधारण जीवन जीना चाहिए। क्या आप सहमत हैं?  
A. जैसा कि मैंने पहले भी कहा है कि अगर कोई आपको कुछ देता है तो आपको उसे ले लेना चाहिए जैसे कि बुद्ध ने सोने के 1000 सिक्कों की कीमत वाले धर्म वस्त्र के लिए कहा था कि अगर कोई देता है तो उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। लेकिन उसके पीछे नहीं भागना चाहिए। यहां फिर से बात संतुलन की आती है। अगर आप उसे अस्वीकार भी कर देंगे, तब भी आपके अंदर लालच बना रहेगा। महंगी कार नहीं भी हो, तब भी आपके अंदर एक इच्छा पैदा हो जाएगी।  

Q. आप जो उपदेश देते हैं, क्या पूरा का पूरा खुद पर उनका अमल भी करते हैं?  
A. अपनी तरफ से पूरी कोशिश करता हूं लेकिन 100% नहीं कह सकता। मैं कोशिश कर रहा हूं। लेकिन मैं जिस तरह से प्रैक्टिस करता हूं, उससे बहुत खुश हूं। मैं जिस तरह से लोगों के साथ जुड़ता हूं, उससे मुझे खुशी मिलती है। 

Q. क्या आपका ऐसा कोई शिष्य है जो इसे 100% लागू कर रहा हो?  
A. 100% करना मुश्किल है, बहुत ही मुश्किल। 

Q. क्या आपका कोई शिष्य आपके स्तर तक पहुंच पाया है?  
A. कुछ हैं जिन्हें अच्छी अनुभूति होती है।  

यह मैराथन इंटरव्यू खत्म हुआ तो रिन्पोछे बोलेः आपने बहुत अच्छे सवाल पूछे और फिर होटल के अपने कमरे से नीचे लॉबी तक विदा करने आए।

पहले भाग का लिंक
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कविता

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