शुक्रवार, 21 अगस्त 2020

समय की विडम्बनाओं पर कटाक्ष करती गजलें

समय की विडम्बनाओं पर कटाक्ष करती गजलें
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वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद डॉ बालकृष्ण पांडेय  का सद्य प्रकाशित गजल संग्रह "साधो उनकी जात निराली"  उनकी उत्कृष्ट गजलों का बेहतरीन संग्रह है। इस संग्रह में उनके शुरुआती लेखन से लेकर के अब तक के लेखन की गजलें शामिल हैं। पांडेय जी को आम जनजीवन के रोजमर्रा की घटनाओं को शब्दों में ढालने में महारत हासिल है। आम आदमी के जीवन में घटने वाली तमाम विसंगतियों, विडंबनाओं को बखूबी बयान करने का जरिया बनती हैं उनकी ग़ज़लें। वे अपनी छोटी-छोटी गजलों में अपने आसपास के जीवन को चित्रित करने वाले रचनाकार हैं।  ये गजलें हमारे समाज में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों पर तीखी तीखी नजर रखती हैं और उन पर अपनी टिप्पणियां करती हैं-

"फरार बाज मगर बुलबुलों पर पहरे हैं
किसी कोयल को कोई काम चल रहा होगा।"

"औरतों, बीमार, बच्चों का हुआ है सर कलम 
कौन देखे न्याय की भी आंख में छाले पड़े हैं।"

इन गजलों की मुख्य विशेषता शब्दों में छिपा हुआ व्यंग्य है जो कहीं भी भाषा की गरिमा का अतिक्रमण नहीं करता, बल्कि धीरे से अपनी गहरी टीस देकर हमें सोचने पर मजबूर करता है-

"जन-जन को बग्घी पर नाधे
राजा की औकात निराली।"

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कविता

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