सोमवार, 10 अगस्त 2020

बालकृष्ण पांडेय पर लेख

थोड़ा ही सही खूब है बाहों का भरोसा
----------------------------------------
 
     वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद बालकृष्ण पांडेय  का सद्य प्रकाशित गजल संग्रह "साधो उनकी जात निराली" उनका  प्रकाशित गजल संग्रह है इस संग्रह में उनके शुरुआती लेखन से लेकर के अब तक के लेखन की गजलें शामिल हैं। आम जनजीवन के रोजमर्रा की घटनाओं को शब्दों में ढालने में उन्हें महारत हासिल है। आम आदमी के जीवन में घटने वाली विसंगतियों, विडंबनाओं को बखूबी बयान करने का जरिया बनती हैं उनकी ग़ज़लें। वे अपनी छोटी-छोटी गजलों में अपने आसपास के जीवन को चित्रित करने वाले रचनाकार हैं।  ये गजलें हमारे समाज में होने वाले छोटे-छोटे बदलावों पर तीखी तीखी नजर रखती हैं और उन पर अपनी टिप्पणियां करती हैं-

"फरार बाज मगर बुलबुलों पर पहरे हैं
किसी कोयल को कोई काम चल रहा होगा।"

"औरतों, बीमार, बच्चों का हुआ है सर कलम 
कौन देखे न्याय की भी आंख में छाले पड़े हैं।"

इनकी गजलों की मुख्य विशेषता शब्दों में छिपा हुआ व्यंग्य है जो कहीं भी भाषा की गरिमा का अतिक्रमण नहीं करता, बल्कि धीरे से अपनी गहरी टीस देकर हमें सोचने पर मजबूर करता है-

"

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

कविता

दुनिया की प्रत्येक चीज   संदेह से दूर नहीं मैं और तुम  दोनों भी खड़े हैं संदेह के आखिरी बिंदु पर तुम मुझ देखो संदेहास्पद नजरों से मैं तुम्हें...